गैलडी बर जद छुटिया माय घरा गयो तो पेली-बर
ढाई बरस री रेखा हु मल्यो | रेखा म्हारे दूर रा दादभाई री बेटी ह |
अबार बे से'र माय म्हारे घरा ही रेवे | रेखा जद बोलणो सीखी ही |
जद बा मारवाड़ी बोलती तो घणी सुणी लागती अर्
म्हाने लागतो क रजस्थानी रो भविष्य अत्तो माडो कोणी |
इ बर जद घरा ग्यो, तो रेखा हिंदी माय बोलबा लागी | म्हाने अचरज हुयो |
म्हे रेखा न पुछ्यो जद बा कयो -" मम्मी मारवाड़ी नहीं बोलने देती " |
अब राजस्थानी रे भविष्य न ले'र डर लागे |
ghar ghar ri kahani hugi pr gawaan sun jyadaa sehraan m hai
ReplyDeleteहाची बात लिखी है सा आप आज कल की अन फेशन रा जमाना मे योई हल सब जगाह है मायद भाषा को |
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ReplyDeleteबात सही कही सा. म्हे भी राजस्थान सें बारे रह्या तो टाबर राजस्थानी भुलग्या. लक्ष्मण
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