घणा दिना हु मन मा आस ही क राजस्थानी व्याकरण पढू अर् जानू क राजस्थानी किन-भात हिंदी हु नयारी ह |
इया ही एकर पढ़ाता थका इक अलंकार माथे निजारा गी -"वैणसगाई"|
ओ अलंकार हिंदी अर् संस्कृत माय कोण लाधे |
म्हे म्हारे निकरमा रजस्थानी ( क delhi !!! ) नेता री किरपा हु बालपना माय रजस्थानी पढ़ी आथ कोणी,
जदी ओ अलंकार म्हारी हिंदी-बुद्धि माय कोण बड्यो | पण ओ अलंकार अत्तो दोरो कोणी, अर् समझया पछ
लागे क ओ अलंकार आपनो सेनाऊ लोकप्रिय अलंकार ह |
वैणसगाई रो अरथ ह - वरणा री एडी सगाई (संबध ) क चोखी लागे |
जिया "पूत सिखावे पालने, मरण बड़ाई माय " |
इमे प्रथम चरण माय 'प' आवे पेली अर् आखर सबद माय , अर् दूजा चरण माय 'म' आवे पेली अर् आखर सबद माय|
ओ मेळ, चरण रा पेला सबद रो पेलो वरन अर् आखर सबद रा बिचरला या आखरी वरन हु भी हु सके |
जिया 'गरज किया सु वागरी, कदे न तजे सिकार '
इमे प्रथम चरण माय 'ग' आवे पेलीपोत रा सबद रे सरू माय , अर् आखर सबद रे बिच माय |
इया ही दूजा चरण माय 'क' आवे |
ओ अलंकार अत्तो रसीलो मानिजतो क, जका काव्य माय इनरो परयोग हुतो, बीमे कोई दोस कोण काढतो |